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वेदना हृदय की शब्द पटल पर उतरी है ।बढ़ रहे पाखंड की रेखा गहरी गहरी है ।कहीं कपट का कहीं छद्म का ।लगा हुआ सा डेरा है। धर्म का नहीं पंथ पाखंड का ।मचा हुआ झमेला है। यह तो कवि की ह्रदय वेदना का ।एक छोटा सा नमूना है ।आगाज करो सब शब्दों का । कुछ बदलाव तो होना है …कुछ बदलाव तो होना है
पंडित संजय रिछारिया बेरखेड़ी सड़क भोपाल रोड सागर मध्य प्रदेश

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सदा प्रसन्न रहो पुत्र ।

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