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एक इन्सान की इन्सानियत भारी सोच मे करुणा दया जो होनी चाहिये वो इस कहानी मे हैऔर इसमे अगर त्याग का पुण्ज मिलाते तो अपनी सैलरी मे से उस बच्ची को खिलौना दिलवा सकते थे1 शायद आज के युग मे ये कहानी अपनी वास्त्विकता खो देती1 बधाइ इस सुन्दर कहानी के लिये1

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12 Jul 2016 02:43 PM

#शुक्रिया आदरणीया निर्मला जी

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