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परिवार संस्कार पोषण एवं सहभागी सहअस्तित्व का आधार है। परंतु आधुनिक परिपेक्ष में टूटते परिवारों एवं बदलते रिश्तो के संदर्भ में परिवार के विषय में समस्त भावनाएं केवल परिकल्पना मात्र होकर रह गई हैंं।
व्यक्तिगत स्पर्धा एवं स्वार्थपरता के चलते पारिवारिक परंपरा एवं धारणाएं क्षीण होकर रह गई है। परिवार के विषय में आपकी भावनाओं का मैं स्वागत करता हूं, परंतु वर्तमान यथार्थ में मुझे कुछ अलग ही दृष्टिगोचर होता है।
धन्यवाद !

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मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ श्याम जी

धन्यवाद !

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