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पढ़ लिए। पहली बार कोरोना की प्रतियोगिता में ही पता चल गया था कि किस तरह साहित्य के नाम पर रचनाओं को बिना कागज दिए अपना बनाया जा रहा है….न रचनाकार को पुस्तक मिलती है न ही पीडीएफ। उसके बाद इस प्रतियोगिता ने और स्तर बता दिया कि प्रमाण पत्र तक अब उपलब्ध नहीं। वो भी e। दो बार के अनुभव के बाद इस मंच से दूर हो रहा हूँ जहां पैसे को अधिक महत्व है रचनात्मकता को नहीं। मौलिक भी चाहिए पर उसके बदले किसी भी प्रकार का प्रोत्साहन नहीं। दुखद है इस तरह के साहित्यिक धनसंग्रह चल रहे हैं। प्रणाम?

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