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सुन्दर विचार , सुन्दर अभिव्यक्ति । पर ये मोटे चर्मधारी कहां सुनेंगे।

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सर मैं इस पर आपको धन्यवाद नही कह सकता , अब आप ही बताओ आपका मन , ऐसी रचना पढ़ने को करता है जिससे आपका मन ख़ुशी की संतुष्टि पाए और मैंने ये जहर उगल दिया आपके सामने , बुरा ना मानना आपने ऑर्डर किया अच्छा खाना और मैंने प्लेट कूड़ा कचरा परोस दिया , पर क्या करें सर हमारी किचन का साइन बोर्ड चमकदार है किंतु अंदर केबल कूड़ा कचरा है ।

ऐसा ही हो रहा है सोलंकी जी । हमारे सुविचार हमारी सरलता के बाद भी हम धोखा ही खाए जा रहे हैं। और धोखा सरल स्वभाव के ही हिस्से आता है ।भीतर की पीड़ा बाहर निकल आए ।यह ज़रूरी है । हमारे स्वभाव का सौंदर्य है।
कुछ सुधार हो न हो आशा तो जीवित रहती है ।आशा जीवन का आधार है । धन्यवाद न मिले न सही मन मिल जाए यही बहुत है । शुभकामनाएं।

शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद सर ।

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