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??तुझसे विरह हो व्यर्थ मेरी साँसें,
क्षण-क्षण बीते युगों के जैसे,
तेरे सानिध्य से जीवित हो उठूँगी,
थरथराते ओठों को समीप लाऊँगी,
जब तुम मिलोगे प्रिय! बहुत उम्दा रचना आदरणीया । मैं आपकी रचना को 3rd तीसरा वोट दिया हूँ । ध्यान रहे । ?? मेरी रचना “ये खत मोहब्बत के” पर भी प्रकाश डालें पसंद आये तो अवलोकन कर वोट देने का भी कृपा करें । मुझे आपके वोट का इंतजार रहेगा महोदया ।????????

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बहुत बहुत आभार आपका? मैं facebook पे नहीं हूँ इसलिए श्रीमान वोट नहीं कर पाऊँगी। मैं स्वयं को भी नहीं वोट कर पाती हूँ।

साहित्यपीडिया पर तो हैं न मैडम जब कमेंट लिख सकती हैं तो वोट भी कर सकती हैं । नया ईमेल नया पासवर्ड से बनाकर लिंक कर लीजिये फेसबुक प्रोफाइल को फिर वोट कर सकती हैं सभी को । धन्यवाद ।?????

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