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हम जिस संस्कृति पर गर्व करते है वर्तमान समय में उसकी हालत घुन लगी लकड़ी की तरह हो गयी है क्योंकि आज कल कोई किसी का एहसान नही रहा सब कुछ लेन देन हो गया है पैसे से जुड़ गया है ,
डॉक्टर भी दूसरे भगवान नही रहे
किसान अन्नदाता नही रहे
सैनिक रक्षक नही रहे
अध्यापक भविष्य निर्माता नही रहे – सब के सब लेने देने बाले हो गए हैं सेवा के बदले धन लेने बाले हो गए हैं , सेवा नाम की चीज नही रही क्योकि भारतीय समाज व्यापारी हो गया है जो केबल धन के बदले जरूरतों का सौदा करता है ।
ये उद्धरण तभी बदलते हैं जब चुनाव होते है उस समय पूरा देश सेवा भाव में डूब जाता है कोई प्रधान सेवक तो कोई चौकीदार तो को नौकर बन जाता है देश का और समाज भी गिरगिट बनकर अपना व्यापर धर्म छोड़ सेवभक्ति में लीन हो जाता है ।
लोग हमको कितनी आसानी से मुर्ख बना देते है सोचने की बात तो ये है जो राजनितिक दल एक एक सीट भी नही जीत पाए आज वो ही दल पुरे करोड़ों किसानों को एक जुट कर सकने की ताकत रखती है अगर ये सच है तो वो झूठ है जिस वोट की गिनती से सत्ता काबिज हुई क्योकि ये किसान ही तो वोट डालते है और ये सत्ता के साथ नही विपक्ष के साथ है ।
आंदोलन हाईजैक बोलना आसान हो गया है क्योंकि हमारी इंग्लिश अच्छी हो गयी है और हिंदी गाँव की भाषा ।

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