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यदि सत्ता पक्ष निरंकुश हो गया है , तो उसका जिम्मेदार विपक्ष स्वयं है। विपक्ष में केवल एक दल नहीं है इसमें कई दल शामिल है जिनमें प्रत्येक के अलग-अलग पार्टी नीति विचार एवं उद्देश्य है। जिसमें राजनीतिक स्वार्थ के लिए सत्ता पक्ष का समर्थन या विरोध शामिल है ।आजकल की राजनीति नीति मूल्यों और मुद्दों के आधार की राजनीति न रहकर जातिगत आधार पर वोट बैंक एवं समर्थन संख्या की राजनीति बनकर रह गई है। जिसमें सत्ता एवं विपक्ष का अधिकांश समय एवं ऊर्जा अपने सदस्यों को पार्टी में बनाए रखने की कवायद में सदस्यों के व्यक्तिगत स्वार्थ की तुष्टीकरण में नष्ट होता है। जनसाधारण की समस्याओं के निराकरण के लिए उनके पास समय कहां रहता है ।
आपका कथन है कि देश में संख्या के आधार पर चुनकर आए द्वितीय स्थान के प्रतिभागी को घोषित विपक्ष की मान्यता प्रदान की जाए , परंतु क्या यह संभव हो सकेगा ? क्या अन्य विपक्षी पार्टियां इसके लिए सहमत होंगीं ?
विपक्षी पार्टियों में भी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए सत्ता का समर्थन करने वाले सदस्यों की कमी नहीं है , और ऐसे अवसरवादी तत्व पार्टी आदर्श एवं नीति को ताक पर रखकर दलबदल करने से भी नहीं चूकते हैं । ऐसी स्थिति में आपके द्वारा सुझाई गई परिकल्पना कहां तक कारगर सिद्ध होगी ? या केवल एक संभावित प्रश्न बनकर रह जाएगी ?

धन्यवाद !

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