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तिश़्नग़ी जम गई पत्थर तरह होठों पर ,
डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला ,
क्या भला मुझको परखने का नतीज़ा निकला ,
ज़ख्मे दिल आपकी नज़रों से भी गहरा निकला ,
कोई मिलता है तो अब अपना पता पूछता हूं ,
मैं तेरी खोज में खुद से भी परेजाँँ निकला ,

श़ुक्रिया !

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17 Oct 2020 08:10 AM

शुक्रिया ?

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