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अतिसुंदर सारगर्भित संदेशपूर्ण प्रस्तुति।

दरअसल पुरुष प्रधान समाज की सोच में बदलाव की आवश्यकता है। नारी अस्मिता एवं समानता के अधिकार पर विभिन्न चर्चाओं एवं संगोष्ठी के आयोजन में विचारों को प्रस्तुत करने एवं जोर शोर से अधिकारों की रक्षा के प्रचार से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। हमें इसके मूल पर समाज की विचारधारा में परिवर्तन के प्रयास करने होंगे जिसमें पुरुष को महिला से ऊपर श्रेष्ठता का दर्जा दिया गया है। और उनके लिए कर्तव्य निर्वाहन के मापदंड बना दिए गए हैं जिसमें घरेलू कार्य करने को सम्मिलित नहीं किया गया है। घरेलू कार्य का कर्तव्य पालन महिलाओं के हिस्से में निर्धारित कर दिया गया है। यदि कोई पुरुष सहकार भावना से प्रेरित होकर घरेलू कार्य करने में सहायता करता है तो उसे हेय दृष्टि से देखकर जोरू का गुलाम आदि शब्दों से परिभाषित कर उसका मनोबल गिराया जाता है। यह एक पुरुष प्रधान समाज की निम्न सोच का परिणाम है। जिसके फलस्वरूप एक पुरुष वर्ग जो महिलाओं के कार्य में हाथ बटाने की सोच रखता है उसको दूसरे वर्ग द्वारा इस प्रकार हतोत्साहित किया जाता है। अतः आवश्यक है कि इस प्रकार की मानसिकता में बदलाव लाया जा सके, तभी इस दिशा में कोई सार्थक परिणाम संभावित हैं ।

धन्यवाद !

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