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इंसानियत ना जाने कहां गुम हो कर रह गई है।
अब तो चारों तरफ़ ज़ुल्मो तश्श़दुत की धूम मची है।
मज़लूम़ ज़िंदगियां सिस़क रही बेज़ार होकर।
इंसान रह गया है रस़ूख और पैसे का गुलाम होकर।
अख़लाक और ईमान की लाश उठाए फिरता है इंंसाँँ।।
झूठ और फ़रेब के इस दौर में खुद को मजबूर पाता है इंसाँँ।

श़ुक्रिया !

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Aman 6.1 Author
17 Jul 2020 08:06 AM

लाजवाब✍️

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