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7 Jul 2020 02:05 PM

अतीत के आँचल से
अचानक अनुपम सा अनुभव
आँखो के आगे आता है।
ये कविताए नही बहीखाता हैं ,

लिखे है जिनमे
रिश्तो का हिसाब।
छूटती ही नहीं कोई
छोटी सी बात।।

माँ का स्नेहिल दुलार
पर कभी हिदायते सख्त।
गाव की सौधी सी मिट्टी
बुजुर्गों के लगाये दरख्त।

बचपन के अनोखे खेल,
रिश्ते नातो की रेलमपेल।
दादी नानी का लाढ़ प्यार
हर पेड़ पौधा फूल पत्ती बेल।

जादूगर की टोपी की तरह
निकलते है नये अजूबे हरबार।
कभी सन्दूक और बन्द किवाड़
चिट्ठी निकली है अबकी बार।

सीमा नहीं है स्नेह, संवेदनाओ की मगर ,,,,,,
कटोचता है ह्रदय, हर किसी के दर्द पर ,,,,,,,

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7 Jul 2020 03:53 PM

Ye to bahut badhiya Kavita likhi Aapne,,, कचोटता होगा यहां ,,,,thanks

7 Jul 2020 07:08 PM

एक नौसिखिये सी तुकबन्दी आपकी रचनाओ के कथानक तथा प्रस्तुतिकरण की नकल करने के प्रयास से की है। पर शिक्षिका की नीर क्षीर विवेकी तीक्ष्ण बुद्धि की दृष्टि स्वत:विसंगति को इंगित कर देती है जिससे सारा कृतित्व व्यर्थ सा लगने लगता है और अगली बार और फूक फूक कर कदम रखने की प्रेरणा।

क्षमाप्रार्थी है।

वैसे अगर गुगुल पर खोज करेगे तो कटोचता व कचोटता दोनो का ही प्रयोग हुआ है,तत्सम और तद्भव के रूप मे। अन्तिम दो पक्तियो में acrostic भाव लाने हेतु प्रयोग किया था।

सादर अभिनन्दन

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