प्रेम को परिभाषित करने की अपनी-अपनी सोच है। प्रेम स्वयं एक पवित्र चारित्रिक गुण है। प्रेम स्वतंत्र अभिव्यक्ति भाव है। जिसकी स्वीकृति किसी प्रकार अधिकृत नहीं है।
धन्यवाद !
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प्रेम को परिभाषित करने की अपनी-अपनी सोच है।
प्रेम स्वयं एक पवित्र चारित्रिक गुण है।
प्रेम स्वतंत्र अभिव्यक्ति भाव है।
जिसकी स्वीकृति किसी प्रकार अधिकृत नहीं है।
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