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19 Jun 2020 09:49 PM

वाह वाह
रिश्तों की उमंग, सम्बन्धों की नाजुक डोर की दूर तक उड़ान, एक काव्य मय स्वीकारोक्ति ।
शब्दों की चाशनी की मिठास कविता पढने के बाद काफी समय तक रहती है।
बधाइयां

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19 Jun 2020 11:10 PM

तुम और मैं का दूसरा part भी पसंद करने के लिए शुक्रिया जी

20 Jun 2020 12:05 AM

समुद्र और चांदनी ,धरा और आकाश के चिरपरिचत प्राकृतिक प्रतीकों को आत्मसात कर कविता के कलेवर में मिलन के विभिन्न आयामों की रंगोली सजायी है।
एक में आकर्षण का आरोह अवरोह है तो दूसरे में एकात्मकता का अहसास परन्तु फिर भी मिलन के लिये क्षितिज का इन्तज़ार ।

समुद्र की हर चंचल लहर में धवल चाँदनी स्वयं उतरकर प्रतिबिम्बित होती है और गगन तो है ही पृथ्वी के आकर्षण से बंधा हुआ उसका अपना कलेवर जिसका हर बिन्दु मिलन का क्षितिज है।
नित प्रति दिन नवीन कविताओ की आस ने लगातार एक उत्सुकता सी जगा कर रक्खी है और दिन में कई बार साहित्योपीडिया में जांचना पढता है कि कहीं काव्य रसास्वादन में पीछे ना रह जाये, जैसे कि पहले सिनेमा में first day first show की व्यग्रता रहती थी।
उत्कृष्ट रचनाओं के माध्यम से पाठको को वशीकरण मंत्र में बाँधने हेतु साधुवाद।

20 Jun 2020 06:34 AM

आप में एक बहुत अच्छे विश्लेषक की प्रतिभा है,,,इतना अच्छा अनुवाद तो लिखने बाला भी n कर पाए,,,आप जरूर कहानियां लिखें, बहुत सफल रहेंगी,,,बहुत बहुत शुक्रिया

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