अरविन्द व्यास
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23 May 2020 10:05 AM
धन्यवाद जी… पर यह दुखी गीत नही है l इसमें तो व्यक्ति मस्त है l
23 May 2020 11:21 AM
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया।
हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।
ब़र्बादियों का स़ोग मनाना फ़िज़ूल था।
ब़र्बादियों का जश्न मनाता चला गया।
अरविन्द व्यास
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23 May 2020 09:39 PM
सही … धन्यवाद जी
न किसी की आंख का ऩूर हूं ।
ना किसी के दिल का क़रार हूं ।
जो किसी के काम ना सके मैं वो मुश्त़े गुब़ार हूं।
श़ुक्रिया !