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वाह जी वाह अद्भुत…. क्या खूब कहि –
या तो अपनी हद में रहकर ,
तुम भारत का सम्मान करो .।
यदि नहीं रह सकते हद में तो ,
भारत सीमा से प्रस्थान करो ।।
विचारणीय पंक्तिया।।?।।

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बहुत ही उत्तम रचना परन्तु अन्यथा न ले तो थोड़ी बहुत मात्रा भार को संसोधित कर इसे और अकर्षनिय बनाया जा सकता है।।

अगर आप इज़ाज़त दे तो मैं कुछ प्रयत्न करूँ।।

जैसे कि…..
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“किसी धर्म से मेरा बैर नहीं पर
कुछ बात जरूरी है कहना !…
सच्चाई का जिनको बोध नहीं,
ये ज्ञान उन्हीं में है भरना !!१!!…
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“हिन्दू मुस्लिम हो या सिख ईसाई ,
इस बात का मुझको फर्क नहीं !…
जननी की पूजा मत करना ,
किस धर्म ने ऐसी बात कही ?२!!…
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“अरे याद करो वो आज़ादी जो ,
वन्देमातरम् बोल के हर बंदा!…
भगत अशफाक और राजगुरु ,
जब चूमे थे फांसी का फंदा!!३!!…
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“अंतिम शब्द उनके प्राणो से ,
भारत माता की जय था निकला !…
आज़ाद मुल्क में पैदा हो कर,
तुम्हे इसका मोल है क्यों खलता !!४!!…
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“यहाँ की रोटी खा कर भी ,
तुम में तिरंगे का सम्मान नहीं !…
धिक्कार है ऐसे लोगो पे ,
जिन्हें भारत पे अभीमान नही !!५!!…
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“पिला रहे हैं दूध साँप को ,
क्यों आँख बंद कर बैठे हैं !…
भारत में रहके भी गली गली ,
छोटा पाकिस्तान बनाये बैठे हैं !!६!!…
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“आ जाओ अब होश में सारे,
समाज में जहर फैलाये फिरते हैं!…
नामो निशान मिटा देंगे वरना ,
ये बात शान से कहते हैं !!७!!…
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“या तो अपनी हद में रहकर ,
तुम भारत का सम्मान करो !…
यदि नहीं रह सकते हद में तो ,
भारत सीमा से प्रस्थान करो !!८!!…
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