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आप का तात्पर्य यह है कि कर्तव्यों के निर्वाह में भावना का कोई महत्त्व नहीं है। भावना ही कर्तव्यों के निर्वाह का प्रेरणा स्रोत है। यदि हमारी सुरक्षा सैनिकों में देश प्रेम की भावना नहीं होगी तो वह अपने कर्तव्यों का निर्वाह कैसे करेंगे ? उनके लिए वह मात्र नौकरी करने जैसा हो जाएगा। एक सैनिक अपना भविष्य देश की सुरक्षा में इसलिए लगाता है कि उसमें देश प्रेम की भावना है । वह दुश्मन से लड़ कर अपने प्राणों की आहुति भी उसी भावना से देता है । इसी प्रकार एक पुत्र अपने मां-बाप की देखभाल में अपने कर्तव्य का निर्वाह इसलिए करता है कि उसमें मां-बाप के प्रति प्रेम एवं सम्मान है। यदि वह प्रेम व सम्मान नही होगा तो वह अपने कर्तव्य निर्वाह से विमुख हो सकता है या उसके लिए कर्तव्य निर्वाह केवल एक अनुबंध मात्र ही रहेगा या उसमें स्वार्थपरता का अंश होगा।
इसी प्रकार एक शिक्षक अपने विद्यार्थी के भविष्य को सुधारने एवं संवारने हेतु भाव से ज्ञान प्रदान नहीं करेगा तो उसके लिए शिक्षा देना केवल एक नौकरी की जिम्मेदारी निभाना मात्र रह जाएगा।
अतः भावनाविहीन कर्तव्य पालन एक अनुबंध मात्र है ।या एक व्यापारिक मजबूरी या बंधक मजदूरी है।

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