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भावनाओं से परिपूर्ण भारत को भावना विहीनों ने अपने तरकश के तूणीरों से इतना आहत कर दिया है कि ना चाहते हुए भी विवेक का प्रयोग करना बाध्यता बन गया है वरन् हम गर्त में समाहित हो जाएंगे।

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यदि हम अपने परिवार, समाज और देश को सुख तथा समृद्धि की ओर ले जाना चाहते हैं तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वार्थ के परे कर्तव्य-पथ पर चलना ही पड़ेगा।

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