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यह सत्य है कि बेटियां अपने पति में अपने पिता के गुण होने की अपेक्षा करती हैं जिन्हें वे अपना आदर्श मानती है। परंतु पति में पिता की छवि देखना संभव नहीं है। क्योंकि हर किसी व्यक्ति का स्वयं का व्यक्तित्व होता है जिसमें उसके गुण, आचार एवं व्यवहार का समावेश होता है। जिसको स्वीकार करना आवश्यक है और आदर्श पति की मानसिकता से उबर कर सोचना बेटियों को चाहिए। घर के बड़े बूढ़ों खासकर माताओं को जो अपनी बेटियों की भावनाओं को समझती हैं इस विषय में ज्ञान अपनी बेटियों को देना चाहिए।
आपका लेखन प्रवाह उत्तम है। परंतु आपकी लेखनी में नकारात्मकता की अधिकता प्रतीत होती है। स्वतंत्र लेखन में कटु सत्य को प्रकट करने के लिए नकारात्मक का समावेश हो सकता है। परंतु लेखनी का आधार नकारात्मक होने से पाठकों पर लेखन का प्रभाव नहीं पड़ता है। और सकारात्मक संदेश की कमी महसूस की जाती है।
आशा है मेरी यह प्रतिक्रिया सकारात्मक लेखन प्रस्तुति में आपको सहायक सिद्ध होगी।
ये मेरे बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वतंत्र विचार है।

धन्यवाद

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बहुत बहुत शुक्रिया सर,
मैंने अपनी इस रचना के माध्यम से एक मानसिक रोगी की मनोदशा, समझाने की कोशिश की थी, पर शायद मैं सफल नहीं हो पाया। पर यकीन मानिये मेरा उद्देश्य नकारात्मकता फैलाना नहीं था। आपके कमेंट को पढ़कर यकीन हो चला है कि आप मुझसे भविष्य में अच्छी रचनाओं की उम्मीद करते हैं। इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ और यह अपेक्षा करता हूँ कि आप भविष्य में भी मेरा उचित मार्गदर्शन करते रहेंगे।
आपको नमन है

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