Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

नियति अट्टहास कर रही और कह रही ।
करते थे बड़ी बड़ी बातें करते थे बड़ी-बड़ी खोजें ।
तुम तो चांद और मंगल पर बसने की करते थे बातें ।
एक अदृश्य से विषाणु ने निकाल ली तुम्हारी सारी हेकड़ियाँ ।
अब घर में बंद पड़े हो एक दूसरे का मुंह तकते ।
बुद्धि कुंद हो रही बाहर निकल नहीं सकते ।
पड़ जो गई हैं पैरों में संक्रमण की बेड़ियाँँ ।
फिर वह बोली अभी भी समय है संभल जाओ ।
प्रकृति से मत खेलो अपनी उन्नति के गर्व को काबू कर होश में आओ ।
अन्यथा मृत्यु की विभीषिका चारों ओर हाहाकार मचाएगी ।
और स्वर्ग से सुंदर यह वसुंधरा विनाश के गर्त में डूब जाएगी।

धन्यवाद !

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
4 Apr 2020 12:16 PM

Thankyou ji

Loading...