सुख दुःख की हर इक माला कुदरत ही पिरोती है । हाथों की बंद लकीरों में ये जागती सोती है ।
श़ुक्रिया !
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सुख दुःख की हर इक माला कुदरत ही पिरोती है ।
हाथों की बंद लकीरों में ये जागती सोती है ।
श़ुक्रिया !