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29 Mar 2020 11:26 AM

मां के प्रति स्नेह स्वाभाविक है,और पुत्री के रूप में जो किया जा सकता है, वह किया ऐसा लिखा भी है! किन्तु यह सच है कि यदि परिजन सहयोग न करें तो फिर स्वयं को कुंठा होती है!मैंने यह अपने आप पर महसूस किया है!और मैं भी चाह कर भी वह सेवा करने में असमर्थ रहा हूँ, पर संतुष्ट हूं कि वह मृत्यु का वर्ण करते समय मेरे पास मेरी गोद में थी,और मैंने उन्हें अंतिम विदाई भी दी!आज शायद उन्हीं का आशीष है, जो उनके बाद भी मुझे उनका स्मरण होते ही सारे कष्ट दूर हो जाते हैं!ईश्वर आप पर पृत्रों की असीम कृपा करें।

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19 Jun 2020 12:07 AM

आदरणीयJaikrishan जी मेरी कहानी को पसंद करने के लिए आभार।देरी के लिए क्षमा

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