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19 Mar 2020 04:45 PM

अद्वितीय रचना
नारी मन के अंतर्द्वंद ,इच्छा और कर्तव्य के बीच संघर्ष और फिर उन्ही कोमल भावों से अपने संसार को संवारने में जुट जाना जो उसने बड़े अरमान से बनाया है।

इस कविता को पढ़ कर मुझे पुरुष होने के नाते अपराध बोध ही रहा है,जो इस कविता की सफलता का प्रतीक है
सादर अभिनंदन।

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20 Mar 2020 10:52 AM

हर कविता को ध्यान से पढ़ना और प्रतिक्रिया देना ,किसी लिखने वाले को और क्या चाहिए,,,,, धन्यवाद

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