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इश्क़ तो उसे कहते हैं जो दिलों जाँँ की हद से गुज़र कर ऱूह तक उतर जाए।
ज़िस्म फ़ना होने पर भी ऱूह से ऱूह का रिश़्ता क़ायम कर जाए।

श़ुक्रिया !

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धन्यवाद महोदय अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए , आपने सच कहा और जमाने ( कलयुग ) की कड़वी सच्चाई से तो आप भी वाकिफ हो ही , माने अपनी रचना में यही कहने का प्रयास किया है।

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