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दर्द को सीने में जज्ब़ करना अब सीख लिया है।
आह ना निकले इसलिए हमने होंंठों को सी लिया है।
ग़म का इज़हार न हो इसलिए हमने अश़्कों को पीना सीख लिया है।
ना सहेंगे अब ज़ुल्म मज़लूम बनकर हमने भी बग़ावत करना सीख लिया है।
श़ुक्रिया !

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