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यह अत्यंत दुःःख का विषय है कि आजकल जनसाधारण में भीड़ की मनोवृत्ति हावी हो चुकी है ।जिसमें व्यक्तिगत सोच का अभाव रहता है ।और जिसे अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए कुछ छद्मवेशी तत्व जनसाधारण को वरगला कर इस्तेमाल करते हैं ।समाज के विभिन्न वर्गों में जागृति पैदा कर भीड़ की मनोवृत्ति में कठपुतली बनकर उनके उपयोग के विरुद्ध वातावरण निर्मित करना होगा । जिससे इस प्रकार के विनाशकारी दुष्प्रभावों से बचा जा सके ।
कामना करता हूँ कि आपकी कृति इस दिशा में उत्प्रेरक सिद्ध हो।
धन्यवाद !

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