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प्रेम दो आत्माओं के अंतः मिलन की परिभाषा है जिसमें वासना का कोई स्थान नहीं है वर्तमान में प्रेम की परिभाषा का पर्याय वासना बनकर रह गया जो संकुचित मानसिकता एवं संस्कार विहीन समाज का द्योतक है समाज में इस संदर्भ में जागृति एवं नई पीढ़ी में इस विषय में सोच मैं बदलाव की आवश्यकता है।
वर्तमान परिस्थिति में संस्कार विहीन समाज पर आपकी वितृष्णा एवं व्यथा से मैं सहमत हूं।

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