Mahesh Kumar Kuldeep "Mahi"
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25 Jul 2016 12:14 PM
जी अशोक जी ! आपने गौर किया और गलतियों की ओर ध्यान दिलाया , इसके लिए आपका धन्यवाद | मैं इन्हें दूर करता हूँ |
आदरणीय कुलदीप जी अच्छी गजल है. किन्तु अंत के दोनों ही अशआर गड़बड़ा गए हैं. देख लें
ज़रा सी हुस्न की दौलत हमारे नाम भी कर दे
ये दौलत जो मिले हमको तो हम सुलतान हो जाये/ जाएँ
न बदले तुम न बदले हम न बदले ये सफ़र ‘माही’
हमारा तुम तुम्हारा हम चलो ईमान बन जाये……….बन जाए / हो जाए ?