प्रदीप कुमार "निश्छल"
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14 Sep 2019 12:19 AM
सादर वंदे
घर के आंगन का वो शोर-शराबा,
निज कोई आज फिर डांटने आये।
रूठकर वो रातों को भूखे सो जाना,
काश!कोई आज गोद मे भूख मिटाये।