kamal purohit
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14 Sep 2019 12:35 AM
समझा नहीं आदरणीय आप कुछ कहना चाह रहे थे ?
आज बैठा हूँ पकाने रिश्तों की मीठी ग़ज़ल।
रूह को तस्कीन देने वाली इक प्यारी ग़ज़ल।