वाह ! खूबसूरत गजल कही है आदरणीय आमोद जी . बहुत बधाई स्वीकारें. तीसरे शेर में तकाबुल-ए-रदीफ़ का एब आ गया है और इसके अगले शेर का सानी कामिसरा देखें //बस यही ख्वाहिस रहेगी वो दिये जलते मिले।।// मिले या मिलें // ख्वाहिस को भी ख्वाहिश कर लें. सादर.
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वाह ! खूबसूरत गजल कही है आदरणीय आमोद जी . बहुत बधाई स्वीकारें. तीसरे शेर में तकाबुल-ए-रदीफ़ का एब आ गया है और इसके अगले शेर का सानी कामिसरा देखें //बस यही ख्वाहिस रहेगी वो दिये जलते मिले।।// मिले या मिलें // ख्वाहिस को भी ख्वाहिश कर लें. सादर.