Mukta Tripathi
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29 Nov 2018 10:04 PM
हाँ जी सर मैं तो लिस्ट बना रही हूँ ।।
यह भी अनुभव उनसे मिल रहा है जो भावुकता की स्याही मे शब्द पिरोते हैं और खुद भावुक नहीं ।उनकी भावुकता मात्र प्रपंच ही है
आदरणीय मुक्ता त्रिपाठी जी , आपने जो “माँ,लिखते लिखते खत्म रोशनाई हुई” पर अपने विचार वयक्त किये मै उससे बिल्कुल सहमत हूँ | वास्तव में आज बहुत से कवि और कवित्रियो की कल्पना की रोशनाई खत्म हो गयी है |