Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

जो अपना है अपने में है,
जो कण-कण में है विद्यमान,
वह नित्यप्राप्त, सर्वत्र-व्याप्त,
अनुभूति ‘हरि’ केवल प्रमाण |

रचनाकारों ने अनुभूति के आधार पर माँ पर रचनाएँ की है | जिनका माँ के प्रति समर्पण जितना गहरा है उनकी रचनाएँ उतनी ज्यादा हृदय को छूती है | आपकी अनुभूति जो रचना के रूप में साकार हो रही है उसको मेरा प्रणाम एवं
मेरा एक वोट इसी रचना के नाम |

Loading...