Dr-Priyanka Tripathi
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21 Nov 2018 11:05 PM
आभार आपका आदरणीय। कविता के मर्म को समझने के लिए धन्यवाद। ?
22 Nov 2018 03:21 AM
मेधा की आस है, मेधा की ही प्यास है। जहाँ है मेधा, हम वही कहीं आस पास हैं।
‘नदी की तरह स्वतन्त्र थी मैं’ ! इस पंक्ति में माँ की एक अद्वितीय विशेषता तथा माँ के एक विशिष्ट गुण का सुविस्तृत वर्णन है।
माँ हमको न ही महास्वतन्त्र समुद्र ‘ बनाती है ‘ और न ही एक परतन्त्र तालाब ‘बनने देती है’।
नदी सीमित भी है और अथाह भी ठीक उसी तरह माँ का हृदय तब सीमित है जब उसे विवशतः हमारे प्रति हमारे भले के लिए कठोर होना पड़ता है और माँ का हृदय हमारे प्रति तब अथाह होता है जब वह ममता, प्रेम, दुलार इत्यादि (सूची भी अथाह है) हम पर लुटाती है। बरसाती है।
Mother is the best form of Almighty, present in the universe.
Awesome.