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आनंदमयी रचना महोदया।
पढ़ते पढ़ते जब पंक्तियाँ समाप्त हो गईं, तो कुछ कमी का आभास हुआ जैसे ‘थोड़ा और’ होता कुछ आगे, तो आनंद अधूरा न रह जाता।
Adv S. Mishra, Varanasi

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