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10 Jul 2016 07:16 AM

दिल था हमारा काँच सा नाज़ुक यूँ कम नहीं
टूटे से फिर जुड़ा नहीं कण कण बिखर गये ………वाह ! बहुत खूब.

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22 Oct 2018 10:22 PM

शुक्रिया अशोक जी

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