मनोज राठौर मनुज
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20 Nov 2018 11:31 AM
तह ए दिल से शुक्रिया आदरणीय |
‘मनुज’मन्दिर न मस्जिद में न गुरुद्वारे में जा बेशक,
जहाँ पर माँ तुम्हारी है खुदा का वो ही दर अच्छा |
आदरणीय इतना अच्छा कैसे लिख लेते हैं हमने भी सीखने की इच्छा है हालांकि हमें लगता है कि अच्छे साहित्य को समाज ने दरकिनार कर रखा है इसलिए युवा पीढ़ी साहित्य को कॅरियर के रूप में नहीं अपना रही है। हो सकता है आपको इतना अच्छा सीखने-सिखाने का वातावरण मिला कि आप गजल जैसी कठिन विधा पर इतना सुंदर लिख रहे हैं। आपको धन्यवाद शुभकामनाओं का सदैव आकांक्षी