जा चुकी थी माँ भी तब,बिन कफ़न ओढ़कर, हाय! दिखावे का लबादा मैंने ढोया बहुत, मुझे देख, माँ की हड्डियों का ढांचा रोया बहुत, रोया बहुत…! बेहतरीन सर… हृदयविदारक . आपके योरकोट प्रोफाइल में लिंक देखा… प्रभावशाली रचना सर के लिए शुभकामनाएँ। वोट 30
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