ईश्वर दयाल गोस्वामी
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9 Dec 2016 12:28 PM
धन्यवाद मित्रवर आशीष जी।
पथ-दर्शक उन्मत्त हुए है ,
मानवता का भाव सो गया ।
सरे-आम लुटती है अस्मत ,
मेरा मानव कहाँ खो गया ।
चेहरे जितने कांतिवान हैं ,
मन, अब उतने ही काले हैं ।
अद्भुत