माफ़ कीजिएगा लेकिन बहुत बचकानी रचना है। कहीं भी प्रौढ़ता नहीं। और इस सोच से तो मैं व्यक्तिगत कतई सहमत नहीं। ख़ैर, यही होता है जब नारी के मन की बातें पुरुष लिखे ! अपवाद तो फिर हर जगह हैं !
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माफ़ कीजिएगा लेकिन बहुत बचकानी रचना है। कहीं भी प्रौढ़ता नहीं। और इस सोच से तो मैं व्यक्तिगत कतई सहमत नहीं। ख़ैर, यही होता है जब नारी के मन की बातें पुरुष लिखे ! अपवाद तो फिर हर जगह हैं !