Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

घणी फूटरी मांड़ी सा,
कल्पना रो ओ संसार किणी इक भाषा रो धणी ही कौनी।
आपणी मायड़ भाषा रै मांही थै थारां हियै रा भाव घणा चौखा अर जीवतां रुप सूं मांड़्या

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
Loading...