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खुदगर्ज़ी की खातिर ज़मीर ओ ईमान बेचा ,
रसूख़ के लिए अख़लाक तक बेच डाला ,
मगर ज़िदगी का एहसास – ए- सुकूँ न खरीद पाया
भटकता रहा भरम के सराबों में किसी अपने की हमदर्दी को न खरीद पाया।

श़ुक्रिया ! 🌷

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