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वाह वाह क्या ख़ूब लिखा है आदरणीय…
बेमिसाल…
लोरियां मीठी-मीठी सुनाती थी वो,थपकियाँ देके मुझको सुलाती थी वो।
जब भी बेचैन होता था मेरा ये मन,चन्दा मामा को आँगन बुलाती थी वो।
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गीत की सरलता और सरसता अभिनंदनीय है।
अद्भुत।
वोट भी किया 27?

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13 Nov 2018 04:22 PM

बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद मित्र जो आप गीत के भाव तक पहुंचे!??

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