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वा शानदार ‘रौशनी की आस में, नये अंधेरों में भटक जातीं हैं,और फिर ज़िन्दगी, ज़िन्दगी के नाम से भी ख़ौफ़ खाती है, क्या गजब की कलम इँसा कई बार गुमराह होकर गुमनाम जिने पर मजबूर हो जाता है आपने अंतर्मन को छूनेवाली बात लिखी बहोत उम्दा मनीषा जी 🙏🙏🙏🌹🌹🌹

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27 Sep 2022 09:47 PM

बहुत-बहुत आभार शेखर जी 🙏🙏🙏

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