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हिम्मतों का साथ मैं, फिर भी छोड़ ना पायी,
गिरकर हर बार उठी, ये देख मंज़िलें भी पास आयीं। उम्मीदे हौसले जगाती ये रचना बेहतरीन शानदार लाजवाब निःशब्द कर देती है आपकी कलम। एक अलग आत्मिक संतुष्टि मिलती है आपकी कलम पढ़ने के बाद 👍👍👍💐💐💐

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13 Sep 2022 06:16 PM

बहुत बहुत धन्यवाद आभार शेखर जी 🙏🙏😊

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