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है प्रफुल्लित मन मगन,
ख्वाहिशों की पोटली में,
मिलेगा मोल क्या इतना,
भर सके पेट आधा ,
ढक सके तन तारा ,
कुछ खिलौने ले सकूं ,
नन्हे हाथों के लिए ,
है जरूरी भी दवाई ,
घर के जर्जर स्तंभों के लिए ,
सोचती है हर पल ,
जरूरतें है अधिक,
क्या मिल सकेगा मोल इतना ,
आज ख्वाहिशों की पोटली का ,
आज ख्वाहिशों की पोटली का
……………………
……………पंडित संजय कुमार रिछारिया बेरखेड़ी सड़क सागर मध्य प्रदेश

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वाह वाह वाह वाह

बहुत-बहुत धन्यवाद सादर प्रणाम

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