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Superb….. Poem Sir ji….. / कविता /
“चेहरा”

/ शाखा पर फटे टुकड़ों की तरह
/ हमारी जिंदगी रुकी नहीं है
/ भूमिगत मार्ग पर
/ चलिए चलते हैं
/ नए बनाना
/ उड़ जाना
/ देखो, अब हम आकाश की ओर जा रहे हैं।
/ हमसे कितना पीछे
/ बूढ़ा सांप,
/ मेनचा मेनचा धोखा
/ कितनी नकाबपोश पहचान l
/ आपको पता है कि
/ मैं एक सपने देखने वाला था
/ नीले समुद्र का धोखा अब नहीं रहा
/ मैं याद भी नहीं करना चाहता
/ उसका दुखों का इतिहास है
/ परछाई ठंडी है, किसी की वासना का मधु
/ मैं फिर कभी नीचे नहीं जाऊंगा
/ धोखे की नीली झील के नीचे
/ मैं नीली आग में नहीं जलना चाहता
/ देखो …
/ अब मैं बादलों को छू रहा हूँ
/ पहाड़ी के शीर्ष पर
/ प्रीति पापुलिक ने आपका दिल छू लिया
/ मुझे किसी की नजरों में डर नहीं है
/ कोई लालची नहीं होता
/ कोई प्यासा नहीं है
/ उसके साथ कुछ भी गलत नहीं है
/ मैं तुम हूँ
/ और है हमारे प्यार का नीला आसमान।
/ रवीन्द्र कुमार बिस्वाल

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