Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

बहुतई बढिया श्रीमान् जी ????
जा जड़कारौ बहुतई पर रई ठंड,
उढ़ना पैरे खूबई फिर भी कांपे अंग ।
सपरबे की कोऊ कैहै तो जैहे जंग,
अगयाने को छोडो़ जात न संग ।।
????

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
Loading...