सर आपने बहुत अच्छा लिखा है, परन्तु मेरा मानना है कि स्वयं हिन्दू ही अपनी शिक्षा को ग्रहण करने के लिए सजग नही है। अन्यथा सरस्वती शिशु मंदिर जो प्रारंभिक शिक्षा देता है, संस्कृत एवं हिंदी में MA, PHD भी होती है, जिनमें केवल हिन्दू शास्त्रों का ही अध्ययन कराया जाता है, वैदिक शिक्षण संस्थान भी है।
किन्तु आप और हम जैसे सभी हिन्दू केबल ढोल पीटते है, और अपने बच्चो को अंग्रेजी एवम मिशनरी स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं।
जब स्कूल में प्रवेश ही नही होगा तो कोई भी संस्थान स्वतः ही समाप्ति की ओर अग्रसर होगा, और हिन्दू संस्थानों के प्रति यही हो रहा है। जबकि अल्पसंख्यक फिर चाहे वो मिस्लमान,सिक्ख,ईसाई, पारसी,यहूदी आदि जो भी अपनी संस्कृति और शिक्षा के प्रति बहुसंख्यकों से कहीं ज्यादा सजग है।
और यही अप्रोच सरकार के स्तर पर दिखती है जो संस्कृति-सभ्यता के नाम पर हो हल्ला बहुत मचाती है किंतु धरातल पर केबल मंदिरों तक ही सीमित रहती है। क्योकि वहीं से वोट मिलते है और धन भी।
सर आपने बहुत अच्छा लिखा है, परन्तु मेरा मानना है कि स्वयं हिन्दू ही अपनी शिक्षा को ग्रहण करने के लिए सजग नही है। अन्यथा सरस्वती शिशु मंदिर जो प्रारंभिक शिक्षा देता है, संस्कृत एवं हिंदी में MA, PHD भी होती है, जिनमें केवल हिन्दू शास्त्रों का ही अध्ययन कराया जाता है, वैदिक शिक्षण संस्थान भी है।
किन्तु आप और हम जैसे सभी हिन्दू केबल ढोल पीटते है, और अपने बच्चो को अंग्रेजी एवम मिशनरी स्कूलों में दाखिला दिलाते हैं।
जब स्कूल में प्रवेश ही नही होगा तो कोई भी संस्थान स्वतः ही समाप्ति की ओर अग्रसर होगा, और हिन्दू संस्थानों के प्रति यही हो रहा है। जबकि अल्पसंख्यक फिर चाहे वो मिस्लमान,सिक्ख,ईसाई, पारसी,यहूदी आदि जो भी अपनी संस्कृति और शिक्षा के प्रति बहुसंख्यकों से कहीं ज्यादा सजग है।
और यही अप्रोच सरकार के स्तर पर दिखती है जो संस्कृति-सभ्यता के नाम पर हो हल्ला बहुत मचाती है किंतु धरातल पर केबल मंदिरों तक ही सीमित रहती है। क्योकि वहीं से वोट मिलते है और धन भी।