श्याम सुन्दर जी सादर अभिवादन, आपने तपस्या में मेरे द्वारा व्यक्त व्यंग्य पर सटीक तथ्य परक तर्क संगत राय प्रस्तुत की है,मेरा आशय यह था कि आज की राजनीति में तपस्या कर कौन रहा है, फिर भी उसे महिमा मंडित किया गया, जबकि गृहस्थी हो या साधु-संत,या दैनिक जीवन के संघर्षों में लगा हुआ व्यक्ति अपने नित्य कर्म में एक तपस्वी की तरह जुटा हुआ है फिर भी वह इसे अपनी तपस्या नहीं कहता अपितु अपने भाग्य, किस्तम,या प्रारब्ध पर ही अपने को आंकता है! आपकी समालोचना से बहुत बल प्राप्त होता है, आप अपनी इस अनुकंपा को हर नवांगतुक के साथ बनाएं रखियेगा,सादर अभिवादन सहित।
श्याम सुन्दर जी सादर अभिवादन, आपने तपस्या में मेरे द्वारा व्यक्त व्यंग्य पर सटीक तथ्य परक तर्क संगत राय प्रस्तुत की है,मेरा आशय यह था कि आज की राजनीति में तपस्या कर कौन रहा है, फिर भी उसे महिमा मंडित किया गया, जबकि गृहस्थी हो या साधु-संत,या दैनिक जीवन के संघर्षों में लगा हुआ व्यक्ति अपने नित्य कर्म में एक तपस्वी की तरह जुटा हुआ है फिर भी वह इसे अपनी तपस्या नहीं कहता अपितु अपने भाग्य, किस्तम,या प्रारब्ध पर ही अपने को आंकता है! आपकी समालोचना से बहुत बल प्राप्त होता है, आप अपनी इस अनुकंपा को हर नवांगतुक के साथ बनाएं रखियेगा,सादर अभिवादन सहित।